राम प्रसाद बिस्मिल, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक अप्रतिम योद्धा, क्रांतिकारी, कवि और बलिदानी नेता थे। Ram Prasad Bismil उनका नाम आते ही हमें काकोरी कांड, असहयोग आंदोलन, और उनकी जोशीली कविताएं याद आती हैं। उन्होंने अपने जीवन के प्रत्येक क्षण को मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया।
✒️ “सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है…” – राम प्रसाद बिस्मिल
यह कविता आज़ादी के आंदोलन की आवाज़ बन गई थी, और बिस्मिल उसका ज्वलंत प्रतीक।
📜 जीवन परिचय (Biography of Ram Prasad Bismil)
| विवरण | जानकारी |
|---|---|
| पूरा नाम | राम प्रसाद बिस्मिल |
| जन्म | 11 जून 1897, शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश |
| माता-पिता | मुरलीधर (पिता), मूलमती देवी (माता) |
| उपनाम | बिस्मिल (साहित्यिक नाम) |
| शिक्षा | प्राथमिक शिक्षा हिंदी, उर्दू और संस्कृत में |
| विचारधारा | क्रांतिकारी राष्ट्रवाद |
| संगठन | हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) |
| प्रसिद्ध कांड | काकोरी ट्रेन डकैती (1925) |
| फांसी | 19 दिसंबर 1927, गोरखपुर जेल |
👶 बाल्यकाल और शिक्षा
राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ। बचपन से ही वे मेधावी, जिज्ञासु और अनुशासित थे। उन्होंने:
- संस्कृत, हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी का ज्ञान अर्जित किया।
- वे धार्मिक पुस्तकों के साथ-साथ क्रांतिकारी साहित्य भी पढ़ते थे।
- आर्य समाज और स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों से अत्यधिक प्रभावित हुए।
🇮🇳 क्रांतिकारी विचारों की शुरुआत
बिस्मिल जी के अंदर बचपन से ही देशभक्ति की भावना थी।
1905 में बंग-भंग आंदोलन और 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड ने उन्हें हिला दिया।
🔥 प्रमुख प्रेरणाएं:
- लाला लाजपत राय और बाल गंगाधर तिलक के विचारों से प्रभावित
- राष्ट्रवादी साहित्य पढ़कर उन्होंने स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र क्रांति की राह अपनाई।
🛡️ हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA)
1923 में बिस्मिल ने साथियों जैसे अशफाकउल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और चंद्रशेखर आज़ाद के साथ मिलकर HRA की स्थापना की।
उद्देश्य:
- ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध हथियारबंद संघर्ष
- धन की व्यवस्था के लिए ब्रिटिश प्रतिष्ठानों को लूटना
- युवाओं को संगठित कर देशव्यापी क्रांति लाना
🚂 काकोरी कांड (Kakori Conspiracy, 1925)
📅 तारीख: 9 अगस्त 1925
📍 स्थान: काकोरी, उत्तर प्रदेश
HRA ने ब्रिटिश सरकार की खजाने वाली ट्रेन को लूटने की योजना बनाई।
इसमें शामिल थे – राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला, राजेंद्र लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह आदि।

🎯 उद्देश्य:
- संगठन के लिए आर्थिक सहायता
- सरकार को क्रांतिकारियों के अस्तित्व का अहसास कराना
❗ परिणाम:
- ब्रिटिश सरकार ने सख्त कार्रवाई की
- 40 से अधिक लोगों की गिरफ्तारी
- 4 क्रांतिकारियों को फांसी की सजा मिली:
- राम प्रसाद बिस्मिल
- अशफाकउल्ला खान
- राजेंद्र लाहिड़ी
- ठाकुर रोशन सिंह
🏰 गिरफ्तारी और मुकदमा
Ram Prasad Bismil को शाहजहांपुर से गिरफ्तार किया गया।
उन पर अंग्रेज़ों ने देशद्रोह, डकैती और साजिश के गंभीर आरोप लगाए।
📜 मुकदमा:
- अंग्रेज़ी न्यायपालिका ने कड़ा रवैया अपनाया
- कई महीनों तक मुकदमा चला
- अंततः 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल में उन्हें फांसी दी गई।
🕯️ फांसी के पहले के अंतिम शब्द
✨ “मैं ब्रिटिश सरकार का दुश्मन नहीं, परंतु भारत को गुलाम बनाने वाली सत्ता का विरोधी हूँ।”
✒️ फांसी के पहले उन्होंने गीता का पाठ किया और मुस्कुराते हुए मृत्यु को गले लगाया।
🖋️ साहित्यिक योगदान
Ram Prasad Bismil केवल क्रांतिकारी ही नहीं, एक संवेदनशील कवि, लेखक और अनुवादक भी थे। उन्होंने:
📚 प्रमुख रचनाएं:
- सरफ़रोशी की तमन्ना (कविता)
- स्वदेशी रंग
- क्रांति गीत
- बलिदान
- कृष्णद्वैपायन का जीवनचरित (अनुवाद)
- कैदी की आत्मकथा (जेल में लिखी गई आत्मकथा)
उनकी रचनाएं युवाओं में जोश भर देती हैं और आज भी क्रांति का संदेश देती हैं।
🧠 बिस्मिल का विचार और दर्शन
बिस्मिल का मानना था कि केवल प्रार्थनाओं से आज़ादी नहीं मिलेगी,
बल्कि बलिदान, साहस और संगठन ही स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त करेंगे।
✍️ प्रमुख विचार:
- “जो देश के लिए मरते हैं, वे अमर होते हैं।”
- “आज़ादी की राह में बलिदान ही सच्चा पूजन है।”
- “गुलामी से अच्छा है – शहीदी।”
🌺 बिस्मिल और अशफाक की दोस्ती – हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक
Ram Prasad Bismil और अशफाकउल्ला खान की दोस्ती आज़ादी के आंदोलन में धार्मिक एकता का एक सुंदर उदाहरण बनी।
दोनों ने एक-दूसरे को भाई माना और साथ मिलकर देश के लिए जान दे दी।
🔥 ‘सरफ़रोशी की तमन्ना’ – क्रांति का घोष
“सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाजुए कातिल में है…”
यह कविता आज़ादी के दीवानों का घोष बन गई।
बिस्मिल ने इसे खुद लिखा और फांसी तक अपने होठों पर जीवित रखा।
🏛️ बिस्मिल की विरासत
आज बिस्मिल सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि देशभक्ति, बलिदान और आत्मगौरव का प्रतीक हैं।
🏵️ सम्मान:
- शाहजहांपुर में उनकी समाधि स्थल
- स्कूल, कॉलेज, चौराहे – उनके नाम पर
- स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है
🧡 निष्कर्ष
Ram Prasad Bismil एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने कलम और तलवार दोनों से अंग्रेज़ों को चुनौती दी।
उनका जीवन हमें सिखाता है कि स्वतंत्रता सिर्फ अधिकार नहीं, एक जिम्मेदारी है।
🇮🇳 वे शहीद हो गए, पर उनके विचार आज भी हर स्वतंत्र भारतीय के हृदय में जीवित हैं।





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