भारतीय संस्कृति में जिन संतों और कवियों ने लोकमानस को गहराई से प्रभावित किया, उनमें Goswami Tulsidas का नाम सर्वोपरि है। वे न केवल एक भक्त कवि थे, बल्कि एक सामाजिक विचारक, सुधारक और साहित्यिक युगपुरुष भी थे। रामचरितमानस जैसी कालजयी रचना ने उन्हें घर-घर में सम्मान दिलाया और वे हिंदी साहित्य के शिखर पुरुष बन गए।
“तुलसीदास के बिना भक्ति आंदोलन अधूरा है, और रामचरितमानस के बिना भारत की आत्मा मौन।”
📜 जीवन परिचय
| विषय | विवरण |
|---|---|
| पूरा नाम | गोस्वामी तुलसीदास |
| जन्म | 1511 ई. (श्रावण शुक्ल सप्तमी) |
| जन्म स्थान | राजापुर, बाँदा जिला (उत्तर प्रदेश) |
| पिता का नाम | आत्माराम दुबे |
| माता का नाम | हुलसी देवी |
| पत्नी का नाम | रत्नावली |
| भाषा | अवधी, ब्रज, संस्कृत |
| संप्रदाय | राम भक्ति, वैष्णव |
| प्रमुख रचनाएँ | रामचरितमानस, विनय पत्रिका, कवितावली |
| मृत्यु | 1623 ई. |
👶 जन्म और बचपन
तुलसीदास का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
कुछ विद्वानों के अनुसार वे जन्म से 12 महीने गर्भ में रहे और जन्म लेते ही “राम” नाम का उच्चारण किया, जिससे उनका नाम रामबोला रखा गया।
उनकी माता का देहांत जन्म के कुछ समय बाद ही हो गया और पिता ने भी त्याग कर दिया। इस कारण उनका पालन-पोषण एक भिक्षुक, चुनि बाबा, ने किया।
📚 शिक्षा और वैराग्य
📖 प्रारंभिक शिक्षा
तुलसीदास ने वाराणसी में विद्वान गुरु शेष सनातन से वेद, पुराण, रामायण और संस्कृत व्याकरण की शिक्षा प्राप्त की।
💔 वैवाहिक जीवन और विरक्ति
तुलसीदास का विवाह रत्नावली से हुआ।
एक बार वे पत्नी से मिलने के लिए रात्रि में उनके मायके पहुँच गए।
पत्नी ने उन्हें तिरस्कार में कहा:
“लाज न आवत आपको, दौरे आएहु नाथ।
अस्थि चर्म मय देह मम, तैसी प्रीति न राम!”
यह वाक्य सुनकर तुलसीदास को वैराग्य हो गया। उन्होंने गृहत्याग कर दिया और राम भक्ति में जीवन समर्पित कर दिया।
🕉️ राम भक्ति और साधना
तुलसीदास ने सम्पूर्ण जीवन भगवान श्रीराम को समर्पित कर दिया। वे अयोध्या, चित्रकूट और वाराणसी में रहकर राम कथा का प्रचार करते रहे।
✨ श्रीराम का दर्शन
कहा जाता है कि Goswami Tulsidas को चित्रकूट में हनुमान जी ने दर्शन दिए और श्रीराम का दर्शन भी कराया। तुलसीदास ने स्वयं कहा है:
“साक्षात् राम को देखा है, यह मेरा सौभाग्य है।”
📘 तुलसीदास की प्रमुख रचनाएँ
1. रामचरितमानस (1574 ई.)
- अवधी भाषा में लिखी गई।
- श्रीराम की जीवनगाथा का लोक संस्करण।
- सात कांड: बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधाकांड, सुंदरकांड, लंका कांड, उत्तरकांड।
- इस ग्रंथ ने उन्हें अमर कर दिया।

2. विनय पत्रिका
- भगवान राम से करुणापूर्वक की गई प्रार्थनाओं का संकलन।
3. कवितावली
- ब्रज भाषा में रामकथा की पुनः प्रस्तुति।
4. हनुमान चालीसा
- श्री हनुमान जी की स्तुति में लिखी गई।
- आज हर घर में पाठ किया जाता है।
अन्य रचनाएँ:
- जानकीमंगल
- रामलला नहछू
- गीतावली
- कृष्ण गीतावली
- पार्वती मंगल
- वैराग्य संदीपनी
🪔 रामचरितमानस – युगों तक अमर
रामचरितमानस केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है। यह जनभाषा में रामकथा कहकर शास्त्रों को आमजन तक पहुँचाने का कार्य करता है।
📍 विशेषताएँ:
- अवधी भाषा में सरल, मधुर और भावपूर्ण शैली।
- प्रत्येक चरित्र जीवंत और आदर्श।
- समाज, धर्म, नीति, राजनीति और प्रेम का समावेश।
- स्त्री और पुरुष चरित्रों की समान प्रतिष्ठा।
- श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में चित्रित किया गया।
💡 Goswami Tulsidas की भक्ति और दर्शन
🔹 भक्ति मार्ग
तुलसीदास ने राम को ब्रह्म माना और भक्त को उसका अंश।
🔹 सगुण ब्रह्म की उपासना
उन्होंने मूर्तिपूजा और राम नाम की महिमा को सर्वोपरि माना।
🔹 लोकजीवन में उपयोगिता
तुलसीदास के ग्रंथों में सामाजिक आदर्श, स्त्री सम्मान, धर्म, नीति और परमार्थ का सामंजस्य दिखता है।
🛕 समाज पर प्रभाव
तुलसीदास का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा।
🧑🤝🧑 लोकभाषा का महत्त्व
- संस्कृत के स्थान पर उन्होंने अवधी और ब्रज को माध्यम बनाया।
- इसने भक्ति आंदोलन को जनमानस से जोड़ा।
🙏 धार्मिक समरसता
- उन्होंने हिंदू धर्म के विभिन्न वर्गों को जोड़ा।
- रामचरितमानस ने भारत के धर्म-सांस्कृतिक पुनर्जागरण को प्रेरित किया।
📚 शिक्षा और प्रेरणा
- उनके ग्रंथ आज भी विद्यालयों, पाठशालाओं और घरों में पढ़े जाते हैं।
- रामचरितमानस नैतिक शिक्षा का स्रोत है।
🕊️ तुलसीदास और मुगलकाल
तुलसीदास का जीवनकाल मुगल सम्राट अकबर के समय से जुड़ा रहा।
🔸 तुलसीदास और अकबर
कहा जाता है कि Goswami Tulsidas ने अकबर को भी अपने विचारों से प्रभावित किया। अकबर ने उन्हें सम्मान दिया और उनके ग्रंथों की रक्षा की।
📜 तुलसीदास के प्रसिद्ध दोहे
1.
“तुलसी इस संसार में, भांति-भांति के लोग।
सबसे हसि मिल बोलिए, नदी नाव संजोग।”
2.
“राम नाम मन मुकुर में, सोवत जे दिन रैन।
ता सन तुलसी बांचिए, काहू की असनैन।”
3.
“पर उपदेश कुशल बहुतेरे, जे आचरहिं ते नर न घनेरे।”
📖 निष्कर्ष
Goswami Tulsidas केवल एक कवि नहीं, बल्कि भारत की भक्ति, संस्कृति और नैतिकता के प्रतीक हैं। उन्होंने श्रीराम के जीवन को लोकभाषा में पिरोकर रामचरितमानस जैसी रचना रच दी, जो युगों-युगों तक अमर रहेगी।
उनकी रचनाओं में हमें भक्ति का मार्ग, जीवन की दिशा, और ईश्वर से जुड़ने का सरल उपाय मिलता है।
“तुलसी का नाम लोगे, राम अपने आप मिल जाएंगे।”





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