भारतीय इतिहास में यदि किसी एक व्यक्ति ने दलित समाज को आवाज़ दी, bhimrao ambedkar सामाजिक अन्याय को चुनौती दी और आधुनिक भारत की नींव को मजबूत किया, तो वह थे डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर। उन्हें हम ‘बाबासाहेब’ के नाम से जानते हैं। वे भारतीय संविधान के निर्माता, एक सामाजिक क्रांतिकारी, विधि विशेषज्ञ, और राजनीतिक विचारक थे।
अक्सर लोग डॉ. अंबेडकर को केवल संविधान निर्माण तक सीमित समझते हैं, लेकिन उनका जीवन उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से भी गहराई से जुड़ा हुआ था। यह लेख इसी महत्वपूर्ण पहलू को विस्तारपूर्वक उजागर करता है।

👶 प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
जन्म – 14 अप्रैल 1891
स्थान – महू (अब मध्य प्रदेश में)
जाति – महार (अछूत समझी जाने वाली जाति)
उनका बचपन ग़रीबी और भेदभाव से घिरा रहा। उन्हें विद्यालय में नीची जाति के कारण कई बार जमीन पर बैठाया गया, पानी पीने से रोका गया, और समाजिक रूप से बहिष्कृत किया गया। लेकिन अंबेडकर ने कभी हार नहीं मानी।
📘 शिक्षा:
- एल्फिंस्टन कॉलेज (मुंबई) – बी.ए.
- कोलंबिया विश्वविद्यालय (अमेरिका) – एम.ए., पीएच.डी.
- लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स – डी.एस.सी., कानून की पढ़ाई
🧭 सामाजिक संघर्ष और आंदोलन
डॉ. अंबेडकर ने अछूतों के अधिकारों के लिए कई आंदोलन चलाए। उत्तर प्रदेश में उनके आंदोलनों की गूंज भी सुनाई दी।
🚩 महत्त्वपूर्ण आंदोलन:
- महाड़ सत्याग्रह (1927) – पानी के अधिकार के लिए
- नासिक का कालाराम मंदिर सत्याग्रह (1930)
- पूना समझौता (1932) – गांधी जी के साथ दलितों के राजनीतिक अधिकारों पर
🏛️ भारतीय संविधान निर्माण में भूमिका
संविधान सभा में प्रवेश:
1946 में डॉ. अंबेडकर को बंगाल की संविधान सभा सीट से चुना गया, लेकिन वह सीट हट जाने के बाद उन्हें उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले से संविधान सभा में भेजा गया।
👉 यहीं से उनका उत्तर प्रदेश से गहरा संबंध प्रारंभ हुआ।
संविधान निर्माण:
डॉ. अंबेडकर को संविधान निर्माण समिति का अध्यक्ष बनाया गया। उन्होंने ऐसे संविधान का निर्माण किया जिसमें:
- सामाजिक समानता
- धर्मनिरपेक्षता
- महिलाओं के अधिकार
- शिक्षा का अधिकार
- न्याय, स्वतंत्रता और बंधुता के सिद्धांत शामिल थे।
👉 उनका सपना था – “एक ऐसा भारत जहाँ सबको समान अवसर मिले, चाहे वो किसी भी जाति या धर्म के हों।”
🏛️ उत्तर प्रदेश से डॉ. अंबेडकर का जुड़ाव
1. जौनपुर से संविधान सभा का सदस्य:
जब वे बंगाल से संविधान सभा के सदस्य नहीं रह पाए, तब उत्तर प्रदेश के जौनपुर से उन्हें एक बार फिर से सदस्य चुना गया। यह यूपी के लोगों की राजनीतिक समझ और सामाजिक चेतना को दर्शाता है।
2. काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में भाषण:
उन्होंने बी.एच.यू. में विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए सामाजिक न्याय और समान शिक्षा की बात की।
वह शिक्षा को समाज सुधार का सबसे बड़ा औजार मानते थे।
3. लखनऊ में दलित आंदोलनों को समर्थन:
लखनऊ और आसपास के क्षेत्रों में अंबेडकर के विचारों से प्रेरित कई आंदोलनों ने जन्म लिया।
4. कौशांबी और चित्रकूट में अंबेडकर मिशन स्कूल और मूर्तियां:
आज भी उत्तर प्रदेश में उनके नाम पर कई संस्थान और स्मारक हैं।
🪔 बौद्ध धर्म ग्रहण और अंतिम वर्ष
1956 में डॉ. अंबेडकर ने अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। उन्होंने कहा —
“मैं हिंदू धर्म में पैदा हुआ, लेकिन हिंदू होकर नहीं मरूंगा।”
उनकी अंतिम पुस्तक थी – “बुद्ध और उनका धर्म”।
उनका देहांत 6 दिसंबर 1956 को हुआ।
📚 डॉ. अंबेडकर की प्रमुख रचनाएं
- जाति का विनाश (Annihilation of Caste)
- बुद्ध और उनका धर्म
- हिंदू धर्म में अछूत कौन और क्यों?
- भारत का संविधान – एक ऐतिहासिक भूमिका
- शूद्र कौन थे?
🗣️ bhimrao ambedkar के प्रेरक विचार
“शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो।”
“जो समाज अपने इतिहास को भूल जाता है, वह समाज कभी आगे नहीं बढ़ सकता।”
“धर्म मानवता के लिए है, मानवता धर्म के लिए नहीं।”
📍 उत्तर प्रदेश में bhimrao ambedkar की विरासत
- डॉ. अंबेडकर स्मारक, लखनऊ – भव्य मूर्ति और संग्रहालय
- अंबेडकर महासभा, प्रयागराज – सामाजिक कार्यों में सक्रिय
- दलित राजनीति और BSP की उत्पत्ति, मायावती जी ने उनके विचारों को मूर्त रूप दिया
- गौतम बुद्ध नगर, अंबेडकर नगर जैसे जिले उनके नाम पर
🔚 निष्कर्ष
डॉ. भीमराव अंबेडकर केवल संविधान निर्माता नहीं थे, वे एक विचारधारा थे। bhimrao ambedkar उत्तर प्रदेश से उनका जुड़ाव केवल राजनीतिक नहीं बल्कि सामाजिक क्रांति का प्रतीक है। आज भारत में जब भी सामाजिक न्याय, समता और अधिकारों की बात होती है, तो अंबेडकर का नाम सबसे पहले आता है।
Leave a Reply