भारत के आदिवासी आंदोलनों और स्वतंत्रता के बाद के राजनीतिक इतिहास में Shibu Soren का नाम अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे न केवल झारखंड आंदोलन के जनक माने जाते हैं, बल्कि आदिवासी समाज की आवाज और उनके अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले एक सशक्त नेता भी थे। उनका पूरा जीवन संघर्ष, नेतृत्व, जनसेवा और सामाजिक न्याय के लिए समर्पित रहा।
प्रारंभिक जीवन और संघर्ष
Shibu Soren का जन्म 11 जनवरी 1944 को झारखंड (तत्कालीन बिहार) के संथाल परगना क्षेत्र के नेमरा गांव में हुआ था। वे संथाल जनजाति से संबंध रखते थे। उनके पिता की हत्या स्थानीय जमींदारों ने कर दी थी। यह घटना शिबू सोरेन के मन पर गहरी छाप छोड़ गई और उन्होंने अन्याय के खिलाफ लड़ने का संकल्प लिया।
गरीबी, अशिक्षा और शोषण से घिरे आदिवासी समाज को देखकर उन्होंने यह ठान लिया कि उन्हें संगठित कर उनके अधिकारों की लड़ाई लड़नी होगी। प्रारंभिक जीवन में ही उन्होंने खेती और मजदूरी करके परिवार का भरण-पोषण किया, लेकिन राजनीति और समाजसेवा की ओर उनका झुकाव लगातार बढ़ता गया।
झारखंड आंदोलन की पृष्ठभूमि
झारखंड क्षेत्र के आदिवासी लंबे समय से शोषण, गरीबी और बेरोजगारी से जूझ रहे थे। इस क्षेत्र के जल, जंगल और जमीन पर बाहरी लोगों का कब्जा बढ़ रहा था। अंग्रेजों के समय से ही यह क्षेत्र उपेक्षित रहा था।
1947 के बाद भी आदिवासियों की समस्याएं कम नहीं हुईं। बिहार सरकार की उपेक्षा और जमींदारों, महाजनों के अत्याचारों ने आदिवासियों को आंदोलन के लिए मजबूर किया।
इसी पृष्ठभूमि में शिबू सोरेन ने आदिवासियों को एकजुट किया और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की।
झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना
1970 के दशक में शिबू सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया। इसका मुख्य उद्देश्य था:
- झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाना।
- आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा करना।
- जल, जंगल और जमीन पर आदिवासियों का हक कायम करना।
- जमींदारों और महाजनों के शोषण से मुक्ति दिलाना।
शिबू सोरेन ने आदिवासियों को संगठित करने के लिए कई जनसभाएं, रैलियां और धरने आयोजित किए। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर लोगों को जागरूक किया।
आंदोलन के प्रमुख चरण
1. प्रारंभिक संघर्ष (1970-1980)
इस दौरान शिबू सोरेन ने जमींदारों और महाजनों के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने आदिवासियों को संगठित कर भूमि अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी।
2. राजनीतिक विस्तार (1980-1990)
इस अवधि में शिबू सोरेन राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हुए। वे कई बार लोकसभा के सदस्य बने और झारखंड आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया।
3. राज्य निर्माण की दिशा में (1990-2000)
कई वर्षों के संघर्ष के बाद 15 नवंबर 2000 को झारखंड को बिहार से अलग कर एक नया राज्य बनाया गया। इसमें शिबू सोरेन की भूमिका निर्णायक रही।

राजनीतिक करियर
- शिबू सोरेन 1980, 1989, 1991, 1996, 2002 आदि वर्षों में संसद के सदस्य रहे।
- वे केंद्र सरकार में कोयला मंत्री भी बने।
- 2005, 2008 और 2009 में वे झारखंड के मुख्यमंत्री रहे।
उपलब्धियां
- झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने में अग्रणी भूमिका।
- आदिवासियों को संगठित कर उनकी राजनीतिक आवाज को मजबूत बनाया।
- शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं के लिए कई योजनाएं शुरू कीं।
विवाद
उनके राजनीतिक जीवन में कई विवाद भी रहे।
- चिरुंडी हत्या कांड में उनका नाम जुड़ा।
- कोयला घोटाले में भी आरोप लगे।
इसके बावजूद उनका जनाधार हमेशा मजबूत रहा और वे आदिवासियों के निर्विवाद नेता बने रहे।
निधन और विरासत
2023 में Shibu Soren का निधन हुआ। उनके निधन से झारखंड की राजनीति में एक युग का अंत हो गया। वे हमेशा झारखंड आंदोलन के जनक और आदिवासी समाज के महान नेता के रूप में याद किए जाएंगे।
उनकी विरासत में:
- झारखंड राज्य की स्थापना।
- आदिवासियों को राजनीतिक रूप से सशक्त करना।
- सामाजिक न्याय और अधिकारों की लड़ाई लड़ना शामिल है।
FAQ
1. शिबू सोरेन कौन थे?
वे झारखंड आंदोलन के जनक और झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक थे।
2. उनका जन्म कब हुआ?
11 जनवरी 1944 को नेमरा गांव, संथाल परगना में।
3. झारखंड आंदोलन में उनका योगदान क्या था?
उन्होंने आदिवासियों को संगठित कर अलग झारखंड राज्य की मांग को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया।
4. वे कब मुख्यमंत्री बने?
वे 2005, 2008 और 2009 में झारखंड के मुख्यमंत्री बने।
5. उनका निधन कब हुआ?
2023 में उनका निधन हुआ।





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