सत्रीया नृत्य भारत की आठ Sattriya Dance प्रमुख शास्त्रीय नृत्य शैलियों में से एक है, जिसका उद्गम असम राज्य में हुआ। यह नृत्य मुख्यतः वैष्णव संत महापुरुष श्रीमंत शंकरदेव द्वारा 15वीं शताब्दी में प्रचारित किया गया था, और यह भक्ति आंदोलन का एक सशक्त माध्यम बना।
🕉️ इतिहास Sattriya Dance (History)
- सत्रीया नृत्य की शुरुआत असम के ‘सत्रों’ (Vaishnavite monasteries) में हुई थी।
- इसे शंकरदेव ने भगवान विष्णु (विशेष रूप से श्रीकृष्ण) की भक्ति के लिए एक धार्मिक नाट्य रूप में प्रस्तुत किया।
- प्रारंभ में यह केवल पुरुष भिक्षुओं द्वारा प्रस्तुत किया जाता था, परंतु आधुनिक काल में महिलाएं भी इसका प्रदर्शन करती हैं।
- वर्ष 2000 में भारत सरकार द्वारा इसे शास्त्रीय नृत्य का दर्जा दिया गया।
💃 विशेषताएं Sattriya Dance (Features)
- अभिनय और भावनाएं: इसमें नृत्य, नाट्य और अभिनय के माध्यम से कृष्ण की लीलाओं को दर्शाया जाता है।
- हस्तमुद्राएं: शास्त्रीय हस्तमुद्राओं और शारीरिक मुद्राओं का प्रयोग होता है।
- वेशभूषा: महिला कलाकार सफेद और लाल या सुनहरे किनारी वाली मेखला-चादर पहनती हैं, जबकि पुरुष पारंपरिक धोती, चादर और पगड़ी पहनते हैं।
- संगीत: इस नृत्य में खोल, मृदंग, बांसुरी, मंजीरा आदि वाद्ययंत्रों का उपयोग होता है।
- नाटकीय तत्व: इसमें अंकिया नाट (शंकरदेव द्वारा रचित नाटकों) के दृश्य भी शामिल होते हैं।
🌟 महत्व (Significance)
- यह नृत्य केवल एक कला नहीं, बल्कि असमिया सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का प्रतीक है।
- शिक्षात्मक उद्देश्य: सत्रीया नृत्य धार्मिक शिक्षा, नैतिक मूल्यों और भक्ति भावना के प्रसार का माध्यम रहा है।
- यह असम की संस्कृति, संगीत, वेशभूषा, साहित्य और रंगमंच को एकीकृत करता है।
- आज यह भारत ही नहीं, बल्कि विश्वभर में असम की कला-संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है।

मुख्य तथ्य:
- स्थान: असम (मुख्यतः माजुली द्वीप और शिवसागर)
- मान्यता: 2000 में भारत सरकार द्वारा शास्त्रीय नृत्य घोषित
- उद्देश्य: भक्ति, कथा कहन और नाट्य कला का संगम
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- 15वीं शताब्दी में संत शंकरदेव द्वारा प्रवर्तित
- “अंकिया नाट” (नाटक) से विकसित
- मूलतः सत्र (मठों) में भक्ति प्रसार का माध्यम
3. सत्रीया नृत्य की विशेषताएं
क. शैली एवं तकनीक
- मुद्राएं: 64 प्रकार के “मुख्य भाव” (हस्त मुद्राएं)
- चाल: नरम और गोलाकार गतियाँ
- प्रमुख आसन:
- “झुमुरा” (आधा बैठक)
- “पाली” (चलने की शैली)
ख. वेशभूषा
- पुरुष: धोती-चादर, मुकुट, मोतियों का हार
- महिला: घाघरा-चोली, गमछा (पीले रंग का)
- मेकअप: सादा, प्राकृतिक सौंदर्य पर जोर
ग. संगीत
- वाद्य: खोल (मृदंग), बाँसुरी, ताल
- गीत: बोरगीत (शंकरदेव रचित)
4. सत्रीया के प्रमुख प्रकार
- प्रसंग नृत्य: कृष्ण लीला से जुड़ी कथाएँ
- गोपी नृत्य: राधा-कृष्ण की रास लीला
- ओजापाली: लोक तत्वों का समावेश
5. प्रसिद्ध सत्रीया नर्तक
- गुरु जतींद्र नाथ गोस्वामी
- शारदी साइकिया
- अनिता शर्मा
6. सांस्कृतिक महत्व
- यूनेस्को द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (2014) में शामिल
- असमिया पहचान का प्रतीक
7. सीखने के अवसर
- कहाँ सीखें:
- कलाक्षेत्र, चेन्नई
- असम राज्य संगीत नाटक अकादमी
- ऑनलाइन कोर्स: उदाहरण के लिए नेटज्यूक
“सत्रीया केवल नृत्य नहीं, बल्कि आत्मा की भगवान से संवाद की भाषा है।”
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क्या आप जानते हैं?
सत्रीया में स्त्री और पुरुष दोनों समान रूप से नृत्य करते हैं, जबकि प्रारंभ में यह केवल पुरुषों (भिक्षुओं) तक सीमित था।
सत्रीया नृत्य भारत के 8 शास्त्रीय नृत्यों में से एक है जिसकी उत्पत्ति असम के वैष्णव मठों (सत्र) में हुई। यह भगवान कृष्ण की भक्ति से जुड़ा एक आध्यात्मिक नृत्य रूप है।
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