Tilka Majhi (1750–1785) – पहले आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी

भारत की स्वतंत्रता की कहानी केवल 1857 के संग्राम तक सीमित नहीं है। इससे पहले भी कई वीरों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया। इन महान क्रांतिकारियों में तिलका मांझी का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है। वे न केवल पहले आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष का बिगुल फूंकने वाले पहले वीर भी थे। Tilka Majhi उनका जीवन आदिवासी समाज के स्वाभिमान, साहस और बलिदान का प्रतीक है।


जन्म और प्रारंभिक जीवन

Tilka Majhi का जन्म 11 फरवरी 1750 को वर्तमान झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र के तिलकपुर गांव में हुआ। वे संथाल जनजाति से संबंधित थे, जो अपनी परंपराओं, साहस और स्वतंत्रता प्रेम के लिए प्रसिद्ध है।

बचपन से ही तिलका मांझी तेजस्वी, साहसी और नेतृत्व क्षमता से परिपूर्ण थे। जंगलों में शिकार, धनुष-बाण चलाने और घुड़सवारी में उनका कोई सानी नहीं था। वे अपने साथियों के बीच न्यायप्रिय और करुणामय स्वभाव के लिए जाने जाते थे।

उनका असली नाम जाबरा पहाड़िया था। बाद में उनके साहस और बहादुरी के कारण लोग उन्हें तिलका मांझी कहने लगे। ‘तिलका’ का अर्थ है – धनुष की डोरी को खींचने वाला।


अंग्रेजों और जमींदारों का अत्याचार

अंग्रेजों के आगमन के बाद आदिवासी समाज की पारंपरिक जीवनशैली पर गहरा प्रभाव पड़ा।

  • अंग्रेजों ने किसानों से भारी कर वसूला
  • जंगलों और जमीनों पर अवैध कब्जा किया
  • स्थानीय जमींदारों और महाजनों ने किसानों को कर्ज के जाल में फंसाया
  • आदिवासियों को उनके जल, जंगल और जमीन से वंचित किया गया

इन परिस्थितियों ने तिलका मांझी के मन में विद्रोह की अग्नि प्रज्वलित कर दी। उन्होंने यह ठान लिया कि अंग्रेजों और उनके सहयोगी जमींदारों के खिलाफ संघर्ष करेंगे।


विद्रोह की शुरुआत

1770 में बंगाल में भीषण अकाल पड़ा। लाखों लोग भूख से मर गए, लेकिन अंग्रेजों ने किसानों की मदद करने के बजाय उनसे जबरन कर वसूला। इस अन्याय को देखकर तिलका मांझी ने आदिवासियों को संगठित करना शुरू किया।

उन्होंने गांव-गांव जाकर लोगों को अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया। उनकी करिश्माई नेतृत्व क्षमता और संघर्ष भावना के कारण हजारों आदिवासी युवा उनके आंदोलन से जुड़ गए।


1771 का संगठित विद्रोह

1771 में Tilka Majhi ने अंग्रेजों और जमींदारों के खिलाफ पहला सशस्त्र विद्रोह छेड़ा।

  • उन्होंने लगान वसूली करने वाले अंग्रेजी गुमाश्ताओं पर हमले किए।
  • अंग्रेजों की चौकियों को ध्वस्त कर दिया।
  • गरीब किसानों को लूटी गई जमीनें वापस दिलाईं।

यह विद्रोह धीरे-धीरे इतना प्रबल हुआ कि अंग्रेजों को इसे दबाने के लिए कठोर सैन्य कार्रवाई करनी पड़ी।


1784 का बड़ा हमला

जनवरी 1784 में तिलका मांझी ने भागलपुर के मजिस्ट्रेट ऑगस्ट क्लीवलैंड को धनुष-बाण से मार गिराया। यह घटना अंग्रेजों के लिए बड़ा झटका थी। अंग्रेज सरकार इस हमले से दहशत में आ गई। पूरे क्षेत्र में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की आग फैल गई।


गिरफ्तारी और बलिदान

अंग्रेजों ने इस विद्रोह को दबाने के लिए विशाल सेना भेजी। कई महीनों तक संघर्ष चला। अंततः 1785 में तिलका मांझी को धोखे से गिरफ्तार कर लिया गया।

उन्हें भागलपुर की सड़कों पर घसीटा गया और 13 जनवरी 1785 को बहादुरगंज के बरगद के पेड़ से फांसी पर लटका दिया गया।

उनकी शहादत ने आदिवासी समाज में स्वतंत्रता की भावना को प्रज्वलित किया और आगे के स्वतंत्रता आंदोलनों के लिए प्रेरणा बनी।


Tilka Majhi Image
Tilka Majhi Image

Tilka Majhi का योगदान

  • वे भारत के पहले आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी थे।
  • उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ संगठित सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व किया।
  • उन्होंने आदिवासियों को अपने अधिकारों के लिए लड़ना सिखाया।
  • उनकी शहादत ने स्वतंत्रता की लौ को और प्रज्वलित किया।

विरासत और सम्मान

आज भी झारखंड, बिहार और बंगाल में तिलका मांझी को महान नायक के रूप में याद किया जाता है।

  • भागलपुर विश्वविद्यालय का नाम बदलकर तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय रखा गया।
  • उनके जीवन पर कई किताबें, नाटक और फिल्में बनीं।
  • झारखंड सरकार ने उनके नाम पर योजनाएं और स्मारक बनाए।

वे आदिवासी गौरव, संघर्ष और बलिदान के अमर प्रतीक बन चुके हैं।


FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

1. तिलका मांझी कौन थे?

तिलका मांझी भारत के पहले आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया।

2. उनका जन्म कब और कहां हुआ?

उनका जन्म 11 फरवरी 1750 को झारखंड के तिलकपुर गांव में हुआ था।

3. उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ कब विद्रोह किया?

उन्होंने 1771 में विद्रोह शुरू किया और 1784 में अंग्रेज मजिस्ट्रेट ऑगस्ट क्लीवलैंड को मार गिराया।

4. तिलका मांझी को कब फांसी दी गई?

13 जनवरी 1785 को भागलपुर के बहादुरगंज में बरगद के पेड़ से उन्हें फांसी दी गई।

5. उनकी विरासत क्या है?

उनकी याद में विश्वविद्यालय का नाम रखा गया और वे आदिवासी गौरव के प्रतीक बन गए

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