इकत (Ikat) एक पूर्व-बुनाई रंगाई तकनीक है जहां धागों को बुनाई से पहले ही पैटर्न के अनुसार बांधकर रंगा जाता है। यह शब्द मलय-इंडोनेशियाई शब्द “मेंगिकत” (बांधना) से लिया गया है। टाई-डाई कला, जिसे भारत में विशेष रूप से बांधनी, लहरिया, इकत, शिबोरी और ट्रिटिक जैसे नामों से जाना जाता है, एक पारंपरिक रंगाई विधि है जिसमें कपड़े को मोड़कर, बाँधकर या सिलकर रंगों में डुबोया जाता है ताकि आकर्षक और सांकेतिक डिज़ाइन उभरें।
🕉️ 1. इतिहास:
- टाई-डाई की परंपरा भारत में लगभग 5000 साल पुरानी मानी जाती है।
- सबसे पुराना उल्लेख गुजरात और राजस्थान की बांधनी कला में मिलता है, जो प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता तक जाती है।
- यह कला पहले प्राकृतिक रंगों (इंडिगो, हल्दी, मंजिष्ठा) से की जाती थी।
🌀 2. प्रकार:
🇮🇳 भारत के प्रमुख टाई-डाई रूप:
- बांधनी (गुजरात और राजस्थान): कपड़े को नन्हें-नन्हें बिंदुओं पर बाँधकर रंगते हैं; गोलाकार, चौकोर और लहरदार डिज़ाइन बनते हैं।
- लहरिया (राजस्थान): कपड़े को तिरछा मोड़कर रंगा जाता है जिससे लहरों जैसा प्रभाव आता है; अक्सर साड़ी में उपयोग।
- इकत (ओडिशा, तेलंगाना, गुजरात): धागों को रंगने के बाद बुना जाता है – इसे प्री-डाइंग टेक्निक कहते हैं।
- शिबोरी (प्रभाव जापानी, लेकिन भारत में रूपांतरित): सिलाई या गांठ लगाकर जटिल पैटर्न बनाए जाते हैं।
- ट्रिटिक (दक्षिण भारत और आदिवासी क्षेत्र): कपड़े को कसी हुई सिलाई से संकुचित कर डिज़ाइन बनाए जाते हैं।
🌸 3. सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व:
- टाई-डाई वस्त्र पारंपरिक त्योहारों, शादियों, और धार्मिक अवसरों में पहने जाते हैं।
- यह कला महिलाओं की आजीविका का साधन बनी हुई है – खासकर ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में।
- आज भी यह पारंपरिक डिज़ाइन फैशन और टेक्सटाइल उद्योग में प्रासंगिक है।
प्रमुख विशेषताएं:
- धागे-स्तर की डाईिंग: बुनाई से पहले धागों को पैटर्न अनुसार रंगा जाता है
- धुंधले किनारे: इकत का सिग्नेचर लुक
- 3 प्रकार: वार्प इकत, वेफ्ट इकत, डबल इकत
2. भारतीय इकत (Ikat) के प्रमुख केंद्र

2.1 पोचमपल्ली (तेलंगाना)
- विशेषता: ज्यामितीय डिजाइन
- उत्पाद: साड़ियाँ, कुर्ते
- GI टैग: 2005 में प्राप्त
2.2 पटोला (गुजरात)
- विशेषता: डबल इकत तकनीक
- ऐतिहासिक महत्व: 12वीं शताब्दी से
- कीमत: ₹1 लाख से ₹25 लाख तक
2.3 ओडिशा इकत
- विशेषता: पौराणिक मोटिफ
- प्रसिद्ध डिजाइन: “शंख” और “चक्र” पैटर्न
3. Ikat इकत बनाने की जटिल प्रक्रिया
3.1 चरणबद्ध विधि
- डिजाइनिंग: पारंपरिक नमूनों का चयन
- बांधना: धागों को पाम लीफ फाइबर से बांधना
- रंगाई: प्राकृतिक रंगों में 5-7 बार डुबोना
- बुनाई: हथकरघे पर सटीक संरेखण
3.2 कारीगरों की चुनौतियां
- एक साड़ी: 4-6 महीने का समय
- संरेखण की सटीकता: 1 इंच में 100 धागे
4. Ikat इकत के प्रकार
प्रकार | विशेषता | क्षेत्र |
---|---|---|
वार्प इकत | लंबवत धागे रंगे | पोचमपल्ली |
वेफ्ट इकत | आड़े धागे रंगे | इंडोनेशिया |
डबल इकत | दोनों धागे रंगे | पटोला |
5. सांस्कृतिक महत्व
- विवाह संस्कार: दक्षिण भारत में इकत साड़ी अनिवार्य
- धार्मिक महत्व: जगन्नाथ पुरी मंदिर में पटोला वस्त्रों का उपयोग
- अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव: बाली और जापान में भारतीय इकत की छाप
6. आधुनिक समय में प्रासंगिकता
- हाई फैशन: सनी लियोनी, सब्यसाची द्वारा उपयोग
- सस्टेनेबल फैशन: प्राकृतिक रंगों की वापसी
- फ्यूजन डिजाइन: इकत प्रिंटेड डेनिम और फॉर्मल वियर
“इकत के हर धागे में बसी है सदियों की कारीगरी, जो बुनकर के हाथों से होती है आपके तक पहुँचने की यात्रा।”
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क्या आप जानते हैं?
एक पारंपरिक पटोला साड़ी बनाने में 6 महीने से 2 साल तक का समय लग सकता है!
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