Kathakali : कथकली केरल का शास्त्रीय नाट्य-नृत्य

कथकली केरल की एक अद्वितीय शास्त्रीय नृत्य-नाट्य शैली है जो 17वीं शताब्दी में विकसित हुई। यह कला रूप अपने जटिल मेकअप, विस्तृत वेशभूषा, सटीक मुद्राओं और नाटकीय अभिव्यक्तियों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। Kathakali कथकली केरल का शास्त्रीय नाट्य-नृत्य शब्द की उत्पत्ति मलयालम के दो शब्दों “कथा” (कहानी) और “कली” (नाटक/कला) से हुई है, जिसका अर्थ है “कहानी का नाटकीय प्रस्तुतीकरण”। यह कला मुख्य रूप से महाकाव्यों (रामायण, महाभारत) और पुराणों की कथाओं पर आधारित है।

2. ऐतिहासिक विकास

2.1 उत्पत्ति और विकास

  • 17वीं शताब्दी में कोट्टारक्करा तंपुरन द्वारा विकसित
  • कृष्णनाट्टम और रामनाट्टम जैसी पूर्ववर्ती कलाओं का प्रभाव
  • त्रावणकोर और कोचीन राजाओं का संरक्षण

2.2 आधुनिक काल में विकास

  • 20वीं सदी में वल्लाथोल नारायण मेनन द्वारा पुनरुत्थान
  • केरल कलामंडलम (1930) की स्थापना
  • यूनेस्को द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की मान्यता

3. तकनीकी पहलू

3.1 मुद्राएँ (हस्ताभिनय)

  • 24 मूल हस्त मुद्राएँ
  • संयुक्त मुद्राओं का प्रयोग
  • नवरसों की अभिव्यक्ति

3.2 पद संचालन

  • कलाशेप्पु (पैरों की थाप)
  • इरक्का और इडक्का (झुकने और उठने की क्रियाएँ)

3.3 चेहरे के भाव

  • नेत्राभिनय (आँखों की गति)
  • भ्रूभंग (भौंहों का नृत्य)
  • अधर-संचालन (होंठों की गति)

4. वेशभूषा और मेकअप

4.1 पात्रों के प्रकार

  1. पच्छा (हरा): धर्मी पात्र (युधिष्ठिर, राम)
  2. कठी (लाल): अहंकारी पात्र (रावण, दुर्योधन)
  3. तादि (दाढ़ी):
  • वेल्ल तादि (सफेद): हनुमान
  • चुवन्न तादि (लाल): बाली
  • करुत्त तादि (काला): शिकारी
  1. करी (काला): दानव और जंगली पात्र

4.2 मेकअप प्रक्रिया

  • चुट्टी (चेहरे पर चावल का पेस्ट)
  • मुकुट और दाढ़ी लगाना
  • 3-5 घंटे लगने वाली तैयारी

5. संगीत और वाद्य यंत्र

5.1 संगीत शैली

  • सोपानम संगीत परंपरा
  • मद्दलम और चेंदा की ताल

5.2 प्रमुख वाद्य

  1. मद्दलम (बेलनाकार ढोल)
  2. चेंदा (लंबा ढोल)
  3. इलाथालम (झांझ)
  4. शंख (प्रारंभ में बजाया जाता है)

6. प्रमुख प्रदर्शन तत्व

6.1 प्रदर्शन के चरण

  1. कोलम थुल्लल (देवताओं का आह्वान)
  2. पुरप्पाडु (प्रस्तुति की शुरुआत)
  3. मेलप्पदम (संगीतमय प्रस्तुति)
  4. कथाभिनय (कथा का अभिनय)

6.2 प्रसिद्ध प्रहसन

  • कल्याण सौगंधिकम
  • नल चरितम
  • दक्षयागम
  • किरमीरवधम

7. प्रशिक्षण पद्धति

7.1 बुनियादी प्रशिक्षण

  • कलारीप्पयट्टू (युद्ध कला) से प्रारंभ
  • आँखों का व्यायाम
  • चेहरे की मांसपेशियों का प्रशिक्षण

7.2 गुरुकुल परंपरा

  • 6-8 वर्ष का गहन प्रशिक्षण
  • केरल कलामंडलम की भूमिका

8. प्रसिद्ध कलाकार

  • चेन्निचूर पणिक्कर
  • कलामंडलम कृष्णन नायर
  • कलामंडलम रामनकुट्टी नायर
  • मंपुज़्हक्कोम्मडन शंकरनकुट्टी

9. आधुनिक समय में कथकली

9.1 समकालीन प्रयोग

  • नए सामाजिक विषयों पर प्रस्तुति
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग

9.2 चुनौतियाँ और संरक्षण

  • युवाओं में घटती रुचि
  • सरकारी और गैर-सरकारी पहल

10. निष्कर्ष

कथकली न सिर्फ एक नृत्य-नाट्य शैली है बल्कि केरल की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। यह कला अपने में धर्म, दर्शन, संगीत और चित्रकला का समन्वय करती है। आज विश्व भर में कथकली को भारतीय संस्कृति के एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में पहचान मिली है।

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“रंग हैं भाव, मुद्राएँ हैं भाषा, कथकली है केरल की आशा। पुराणों की यह जीवंत कहानी, भारतीय कला की अमर निशानी।”

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