जब भी छठ पूजा की बात होती है, एक नाम अनायास ही हर दिल में गूंजता है – Sharda Sinha
बिहार की सांस्कृतिक पहचान बन चुकीं शारदा सिन्हा को लोग स्नेह से ‘बिहार कोकिला’ कहते हैं। छठ के पारंपरिक गीतों से लेकर विवाह के संस्कारों तक, उनकी आवाज़ ने लाखों दिलों को छूआ है।

🧒 प्रारंभिक जीवन
जन्म: 1 अक्टूबर 1952
जन्मस्थान: समस्तीपुर, बिहार
पिता: राजेश्वर सिन्हा (सामाजिक कार्यकर्ता)
शारदा सिन्हा का जन्म एक मध्यमवर्गीय मैथिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन से ही उनमें संगीत के प्रति अद्भुत लगाव देखा गया। पारिवारिक वातावरण में संगीत की प्रेरणा उन्हें सहज रूप से मिली।
🎼 शिक्षा और संगीत की औपचारिक ट्रेनिंग
- शारदा सिन्हा ने संगीत की औपचारिक शिक्षा पटना के Women’s College और Patna University से प्राप्त की।
- वे छायाल गायन, भजन, लोकगीत, और शास्त्रीय संगीत में दक्ष हैं।
- संगीत की विधिवत शिक्षा उन्होंने पंडित शिवचरण सिंह और विदुषी राजेश्वरी दत्ता से ली।
🎤 करियर की शुरुआत
शारदा सिन्हा का गायन करियर आकाशवाणी पटना से शुरू हुआ, जहाँ उन्होंने लोकगीत गाने शुरू किए। लेकिन असली पहचान उन्हें मिली 1980 के दशक में जब उन्होंने छठ पर्व के पारंपरिक गीत गाना शुरू किया।
उनके गीतों की मधुरता और भावनात्मक गहराई ने उन्हें बिहार ही नहीं, देशभर में लोकप्रिय बना दिया।
🌄 छठ गीतों की रानी
छठ पूजा बिहार और उत्तर भारत का एक प्रमुख पर्व है, जिसमें सूर्य देवता और छठी मईया की पूजा की जाती है। शारदा सिन्हा की आवाज़ में गाए गए छठ गीतों ने इस पर्व को और भी आध्यात्मिक और भावनात्मक बना दिया है।
प्रसिद्ध छठ गीत:
- “केलवा के पात पर उगेलन सूरज मल जानी”
- “पिंडिया के पतरी”
- “उग हे सूरज देव”
- “कांच ही बांस के बहंगिया”
इन गीतों की लोकप्रियता इतनी है कि बिहार में छठ बिना शारदा सिन्हा की आवाज़ के अधूरा माना जाता है।
👰 विवाह एवं संस्कार गीत
बिहार की लोकसंस्कृति में शारदा सिन्हा का योगदान केवल छठ तक सीमित नहीं है। उन्होंने विवाह के सगाई, हल्दी, विदाई जैसे अवसरों के लिए भी अनगिनत लोकगीत गाए हैं।
प्रमुख विवाह गीत:
- “अंगना में आएल नंदन”
- “तोहर संग लागल बानी सजना”
- “विदाई के बेला”
इन गीतों में वो भावनाएँ होती हैं जो एक बेटी के विदा होते समय हर घर में महसूस की जाती हैं।
🎥 फिल्मी करियर
शारदा सिन्हा ने कई हिंदी फिल्मों में भी पार्श्वगायन किया है। खासकर मैथिली और भोजपुरी पृष्ठभूमि वाली फिल्मों में उनकी आवाज़ का प्रयोग हुआ है।
प्रसिद्ध फिल्मी गीत:
- “Kaun Disha Mein Le Ke Chala Re Batohiya” – फिल्म: Gangs of Wasseypur
- “Piya ke gaon mein” – मैथिली फिल्म
हालांकि फिल्मों में उन्होंने सीमित रूप से गाया, लेकिन उनकी लोकसंगीत की पहचान इतनी मजबूत है कि उन्हें फिल्मों की दुनिया की जरूरत ही नहीं पड़ी।
🏆 पुरस्कार और सम्मान
शारदा सिन्हा को उनके संगीत योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
वर्ष | सम्मान | विवरण |
---|---|---|
1996 | पद्मश्री | भारत सरकार द्वारा |
2018 | पद्म भूषण | संगीत के क्षेत्र में विशेष योगदान |
2011 | महिला शक्ति पुरस्कार | भारत सरकार |
2009 | बीसीसीआई सम्मान | बिहार सरकार द्वारा |
अन्य | लोक संस्कृति सम्मान, छठ गीत गौरव पुरस्कार |
📺 मीडिया में उपस्थिति
Sharda Sinha समय-समय पर दूरदर्शन और आकाशवाणी पर विशेष पर्वों और लोक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शामिल होती रही हैं। उनके गीत YouTube, Spotify और अन्य संगीत प्लेटफॉर्म पर भी बेहद लोकप्रिय हैं।
🌐 समाज और संस्कृति में योगदान
- बिहार की महिला सशक्तिकरण की आवाज़ बनीं।
- लोक कला और परंपरा को आधुनिक पीढ़ी से जोड़ने का कार्य किया।
- कई युवा गायिकाओं को प्रेरित किया और लोकसंगीत को जीवंत बनाए रखा।
🧘♀️ निजी जीवन
Sharda Sinha का पारिवारिक जीवन शांत और साधारण रहा है। उन्होंने हमेशा पारंपरिक मूल्यों को महत्व दिया। वे एक सादगीपूर्ण जीवन जीती हैं और सामाजिक कार्यों में भी योगदान देती रहती हैं।
💬 लोकप्रिय उद्धरण
“लोकसंगीत केवल मनोरंजन नहीं, हमारी आत्मा की भाषा है।” – शारदा सिन्हा
📚 निष्कर्ष
शारदा सिन्हा न केवल एक गायिका हैं, बल्कि बिहार की सांस्कृतिक आत्मा की प्रतिनिधि हैं। Sharda Sinha उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि बिना फिल्मी ग्लैमर के भी कोई अपनी अवाज से एक राज्य की पहचान बन सकता है। उनका योगदान आज भी ज्यों का त्यों जीवंत है। Sharda Sinha हर साल जब सूर्य को अर्घ्य देने की बारी आती है, बिहार की हर गली, हर छत, हर घाट पर एक आवाज़ गूंजती है – शारदा सिन्हा की।
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