🔷 प्रस्तावना
झारखंड, भारत का एक सांस्कृतिक और प्राकृतिक दृष्टि से समृद्ध राज्य, Jharkhand Folk Culture and Dance अपनी विविध जनजातीय परंपराओं, रीति-रिवाजों और जीवंत लोक संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। इस राज्य की लोक संस्कृति और नृत्य न केवल इसकी परंपराओं की झलक दिखाते हैं, बल्कि यह जनजातीय जीवनशैली, सामाजिक संरचना और सामूहिक अभिव्यक्ति का एक अद्भुत माध्यम भी हैं। Jharkhand Folk Culture and Dance यहाँ की संस्कृति आदिवासी जीवन की धड़कनों में बसती है और नृत्य उनमें उत्सवों की तरह बहती है।
🔶 1. झारखंड की लोक संस्कृति का परिचय
झारखंड की संस्कृति मुख्यतः जनजातीय समुदायों से प्रभावित है। यहाँ की प्रमुख जनजातियाँ – संथाल, मुंडा, उरांव, हो, खड़िया, बिरजिया, असुर, परहिया और बिरहोर – अपनी-अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान के साथ सदियों से झारखंड की सांस्कृतिक धरोहर को संजोए हुए हैं।
- भाषा और बोली: नागपुरी, कुरुख, संथाली, हो, मुंडारी, खड़िया आदि बोली जाती हैं।
- रहन-सहन और पहनावा: पारंपरिक वस्त्रों में पुरुष धोती और अंगवस्त्र पहनते हैं, जबकि महिलाएँ साड़ी और आदिवासी आभूषणों से सजी रहती हैं। त्योहारों के समय रंग-बिरंगे कपड़े और वाद्ययंत्रों के साथ नृत्य होते हैं।
🔶 2. झारखंड के प्रमुख लोक नृत्य
झारखंड के नृत्य केवल मनोरंजन नहीं हैं, बल्कि वे जनजातीय समुदायों की आस्था, प्रकृति प्रेम, ऐक्य और इतिहास के भी प्रतीक हैं। यहाँ कुछ प्रमुख नृत्य रूपों का विवरण है:
🔸 2.1 संथाली नृत्य
यह संथाल जनजाति द्वारा किया जाने वाला सबसे प्रसिद्ध लोक नृत्य है। महिलाएँ कतारबद्ध होकर अपने कंधों को एक-दूसरे के साथ जोड़कर नृत्य करती हैं और पुरुष ढोल, मांदर और तीर-बाँस के साथ संगत देते हैं।
- विशेषता: सजीवता, सामूहिक भागीदारी, आदिवासी साड़ी और आभूषण।
- अवसर: सोहराय, बाहा, करमा आदि त्योहारों में।
🔸 2.2 छऊ नृत्य (सरायकेला शैली)
छऊ नृत्य झारखंड, उड़ीसा और बंगाल में प्रचलित है, पर सरायकेला की शैली अपने मुखौटों और नाटकीयता के लिए प्रसिद्ध है।
- विशेषता: मुखौटे, युद्धक मुद्राएँ, पौराणिक कथाओं पर आधारित।
- स्थल: सरायकेला-खरसावाँ ज़िला।
🔸 2.3 करमा नृत्य
यह नृत्य करम त्योहार के समय किया जाता है। करमा वृक्ष की पूजा के बाद युवक-युवतियाँ समूहों में नृत्य करते हैं।
- संगीत: मांदर, नगाड़ा, झांझ और करम गीत।
- संदेश: प्रकृति प्रेम और भाईचारे का प्रतीक।
🔸 2.4 जादूर नृत्य
यह नृत्य बिरजिया और असुर जनजातियों में प्रचलित है और आमतौर पर विशेष धार्मिक या औपचारिक अवसरों पर किया जाता है।
- उद्देश्य: भूत-प्रेतों को दूर करने या फसल की रक्षा के लिए किया जाता है।

🔶 3. लोक संगीत और वाद्य यंत्र
झारखंड का लोक संगीत लोकजीवन की भावनाओं को स्वर देता है। यहाँ के गीत प्रेम, वीरता, प्रकृति, फसल और सामाजिक जीवन के विविध पहलुओं को दर्शाते हैं।
🔸 प्रमुख लोक गीत:
- फगुआ गीत: होली के अवसर पर।
- झूमर गीत: उत्सवों पर।
- सोहर गीत: बच्चों के जन्म पर।
- करमा गीत: करम पूजा पर।
🔸 प्रमुख वाद्य यंत्र:
- मांदर: नृत्य में लय प्रदान करता है।
- नगाड़ा: सामूहिक नृत्य के दौरान।
- तूंबी, बांसुरी, सारंगी: आदिवासी संगीत की आत्मा।
🔶 4. सांस्कृतिक पर्व और उनका नृत्य-संगीत में योगदान
झारखंड के प्रमुख पर्वों में करम, सरहुल, सोहराय, मगही पर्व, बंदना आदि सम्मिलित हैं। इन त्योहारों के दौरान नृत्य और गीतों का विशेष आयोजन होता है। यह नृत्य जनजातीय समाज की सामूहिकता, कृषि पर निर्भरता और प्रकृति के प्रति श्रद्धा को उजागर करते हैं।
पर्व | विशेष नृत्य | प्रतीक |
---|---|---|
करम | करमा नृत्य | प्रकृति पूजा |
सरहुल | फूल पूजा नृत्य | वसंत का स्वागत |
सोहराय | पशु पूजन नृत्य | कृषि समृद्धि |
बंदना | दीपों के साथ नृत्य | भाईचारे का उत्सव |
🔶 5. लोक कला और शिल्प से जुड़ाव
झारखंड की लोक संस्कृति केवल नृत्य और संगीत तक सीमित नहीं है। यहाँ की लोक कला, जैसे पेंटिंग (सोहराय, कोहबर), मिट्टी के बर्तन, बांस के हस्तशिल्प, और आदिवासी आभूषण, संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
- सोहराय चित्रकला: दीवारों पर भित्ति चित्र – पशु, पक्षी और वनस्पति चित्रित।
- कोहबर चित्रकला: विवाह के समय उपयोग में लायी जाती है।
- लकड़ी की मूर्तियाँ: धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यों में।
🔶 6. आधुनिकता और लोक संस्कृति की चुनौतियाँ
तेजी से बढ़ते शहरीकरण, तकनीकी बदलाव और आधुनिक जीवनशैली के कारण झारखंड की पारंपरिक लोक संस्कृति प्रभावित हो रही है। नयी पीढ़ियाँ पारंपरिक नृत्य और गीतों से कटती जा रही हैं।
- चुनौतियाँ:
- युवाओं में रुचि की कमी।
- व्यावसायिकता और मूल स्वरूप में बदलाव।
- सरकारी संरक्षण का अभाव।
- समाधान:
- विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में लोक नृत्य की शिक्षा।
- स्थानीय मेले और सांस्कृतिक महोत्सव।
- डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर लोक नृत्य और गीतों का प्रचार।
🔶 7. झारखंड की लोक संस्कृति का भविष्य
झारखंड की लोक संस्कृति आज भी जिंदा है क्योंकि यह इसकी आत्मा में रची-बसी है। यदि सरकार, समाज और कलाकार मिलकर प्रयास करें, तो यह धरोहर आने वाली पीढ़ियों तक संरक्षित रह सकती है। पर्यटन, शोध, संस्कृति उत्सव और डिजिटल अभिलेखन इसके संवर्धन के मार्ग हैं।
🔷 निष्कर्ष
झारखंड की लोक संस्कृति और नृत्य न केवल इस राज्य की पहचान हैं, Jharkhand Folk Culture and Dance बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक विविधता का एक जीवंत अध्याय भी हैं। इनकी धुनों और कदमों में प्रकृति की लय, परंपराओं की गहराई और सामूहिकता की शक्ति गूँजती है। इन्हें संरक्षित और प्रचारित करना हर नागरिक और नीति-निर्माता की जिम्मेदारी है।
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