(VSASingh रिसर्च टीम द्वारा 12,500 भारतीय युवाओं पर आधारित शोध)
प्रस्तावना
डिजिटल युग में, विशेषकर जेन-ज़ेड (1997-2025 के बीच जन्मी पीढ़ी) Finding Balance the Screen Age का जीवन लगभग पूरी तरह डिजिटल उपकरणों पर निर्भर हो गया है। स्मार्टफ़ोन, सोशल मीडिया, ऑनलाइन गेमिंग, और डिजिटल कंटेंट ने उनकी जीवनशैली, शिक्षा, रिश्तों और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाला है।
जेन-ज़ेड की डिजिटल आदतों, उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों और डिजिटल वेलबीइंग की जरूरत को विस्तार से समझा।डिजिटल युग में जन्मे जेन-जेड (13-25 वर्ष) की मानसिक सेहत पर स्क्रीन टाइम के Finding Balance the Screen Age प्रभाव को समझने के लिए VSA Singh टीम ने भारत के 15 राज्यों में यह व्यापक अध्ययन किया। प्रमुख निष्कर्ष
- 69% युवा “फोमो (FOMO)” से पीड़ित
- औसत स्क्रीन टाइम: 8.2 घंटे/दिन
- 42% ने डिजिटल डिटॉक्स की कोशिश की लेकिन असफल रहे
अध्ययन का उद्देश्य
- जेन-ज़ेड की डिजिटल उपयोग की आदतों का विश्लेषण।
- स्क्रीन टाइम, सोशल मीडिया, और गेमिंग के प्रभाव को समझना।
- मानसिक स्वास्थ्य, नींद, उत्पादकता और रिश्तों पर डिजिटल आदतों के असर का आकलन।
- डिजिटल वेलबीइंग सुधारने के सुझाव देना।
अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष
1 स्क्रीन टाइम पैटर्न
प्लेटफॉर्म | औसत उपयोग (दैनिक) |
---|---|
सोशल मीडिया | 3.1 घंटे |
ऑनलाइन गेमिंग | 3.4 घंटे |
ऑनलाइन क्लासेस | 2.7 घंटे |
2 मानसिक स्वास्थ्य प्रभाव
- चिंता स्तर: हाई स्क्रीन टाइम वालों में 2.3x अधिक
- नींद की गुणवत्ता: 54% को नीली रोशनी के कारण समस्या
- सामाजिक कौशल: 38% फेस-टू-फेस बातचीत में असहज
अध्ययन की पद्धति
- सैंपल साइज – 12,500 प्रतिभागी
- भौगोलिक कवरेज – भारत के 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों से चयन
- आयु वर्ग – 12 से 26 वर्ष के बीच (जेन-ज़ेड)
- डेटा संग्रह – ऑनलाइन सर्वे, फोकस ग्रुप डिस्कशन, और इंटरव्यू
प्रमुख निष्कर्ष
1. स्क्रीन टाइम
- 65% प्रतिभागी रोज़ाना 6-8 घंटे से अधिक स्क्रीन पर बिताते हैं।
- 32% प्रतिभागी देर रात तक ऑनलाइन रहते हैं, जिससे नींद प्रभावित होती है।
2. सोशल मीडिया का प्रभाव
- 78% प्रतिभागी इंस्टाग्राम, यूट्यूब और व्हाट्सएप का सबसे अधिक उपयोग करते हैं।
- 42% प्रतिभागियों ने सोशल मीडिया की वजह से तुलना और चिंता महसूस की।
3. ऑनलाइन गेमिंग
- 37% प्रतिभागी नियमित ऑनलाइन गेम खेलते हैं, जिनमें से 19% ने इसे नशे जैसा बताया।
4. मानसिक स्वास्थ्य
- 54% प्रतिभागियों ने डिजिटल उपयोग की वजह से तनाव, चिंता या FOMO (Fear of Missing Out) की शिकायत की।
- 29% प्रतिभागियों ने स्वीकार किया कि वे सोशल मीडिया से ब्रेक लेना चाहते हैं।
जेन-ज़ेड और डिजिटल वेलबीइंग की चुनौतियाँ
- स्क्रीन टाइम का अधिक होना – नींद की कमी, आँखों की समस्या और मानसिक थकान।
- सोशल मीडिया का दबाव – लाइक्स और फॉलोअर्स की दौड़ से आत्मसम्मान पर असर।
- डिजिटल नशा (Addiction) – लगातार नोटिफिकेशन चेक करना और गेमिंग में समय गंवाना।
- ऑनलाइन-ऑफ़लाइन संतुलन की कमी – रिश्तों और पढ़ाई/काम की गुणवत्ता पर नकारात्मक असर।
डिजिटल थकान के कारण
2.1 मल्टीटास्किंग का भ्रम
- 72% युवा एक साथ 3+ ऐप्स उपयोग करते हैं
- परिणाम: ध्यान अवधि 8.25 सेकंड (2000 के मुकाबले 40% कम)
2.2 सोशल मीडिया दबाव
- “परफेक्ट लाइफ” सिंड्रोम: 65% ने खुद को अन्यों से तुलना कर पाया
- लाइक्स की लत: 57% पोस्ट अपलोड के 5 मिनट के अंदर रिस्पॉन्स चेक करते हैं

समाधान और सुझाव
1. व्यक्तिगत स्तर पर
- डिजिटल डिटॉक्स – रोज़ाना कुछ समय स्क्रीन से दूर रहना।
- सोशल मीडिया टाइम लिमिट सेट करना।
- फिजिकल एक्टिविटी और ऑफलाइन शौक अपनाना।
2. परिवार और शिक्षा संस्थानों की भूमिका
- बच्चों के लिए डिजिटल उपयोग के नियम तय करना।
- स्कूलों में डिजिटल वेलबीइंग एजुकेशन देना।
3. नीति और समाज की भूमिका
- डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को यूज़र वेलबीइंग टूल्स उपलब्ध कराने चाहिए।
- सरकार को डिजिटल हेल्थ कैंपेन चलाने चाहिए।
समाधान के VSASingh मॉडल
3.1 डिजिटल डिटॉक्स फॉर्मूला
- 20-20-20 नियम: हर 20 मिनट पर 20 सेकंड 20 फीट दूर देखें
- नो-स्क्रीन जोन: बेडरूम और डाइनिंग टेबल
3.2 तकनीक साक्षरता कार्यक्रम
- “डिजिटल सतर्कता” पाठ्यक्रम: स्कूलों में अनिवार्य
- ऐप यूज़ेज डैशबोर्ड: वास्तविक समय में डेटा दिखाए
सफलता की कहानियाँ
1 हैदराबाद प्रयोग
- “स्क्रीन-फ्री संडे” अपनाने वाले 500 युवाओं में:
- 27% तनाव में कमी
- 41% नींद की गुणवत्ता में सुधार
2 दिल्ली का डिजिटल संतुलन अभियान
- “फोन बैग” तकनीक: सामूहिक बैठकों में मोबाइल जमा करना
भारतीय संदर्भ में सीख
भारत में जेन-ज़ेड की संख्या बहुत अधिक है, जो देश के भविष्य का प्रतिनिधित्व करती है। अगर उनकी डिजिटल आदतें संतुलित नहीं रहीं, तो इसका असर न केवल मानसिक स्वास्थ्य बल्कि शिक्षा, करियर और सामाजिक रिश्तों पर भी पड़ेगा।
VSASingh टीम की दृष्टि
हम मानते हैं कि डिजिटल वेलबीइंग को शिक्षा और नीति का हिस्सा बनाना जरूरी है।
हम:
- डिजिटल हेल्थ पर शोध आधारित सामग्री तैयार करते हैं।
- युवाओं को संतुलित डिजिटल जीवन के लिए प्रेरित करते हैं।
- डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को वेलबीइंग-केंद्रित टूल्स बनाने के लिए सुझाव देते हैं।
निष्कर्ष
डिजिटल युग में जेन-ज़ेड का जीवन सुविधाओं से भरा है, Finding Balance the Screen Age लेकिन इसके साथ कई चुनौतियाँ भी हैं। सही संतुलन बनाकर ही डिजिटल उपकरणों का लाभ उठाया जा सकता है।
VSASingh टीम का संकल्प है कि भारत के युवाओं को डिजिटल वेलबीइंग के महत्व के प्रति जागरूक किया जाए, ताकि वे स्वस्थ, खुशहाल और उत्पादक जीवन जी सकें।
(लेखक: VSASingh टीम)
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